नज़रे फिर से तुमसे मिलाऊँ कैसे , गलती वहीं फिर से दोहराऊं कैसे । इन आँखों को तो तम्हे देखने की आदत है, तम्हारे चक्कर मे सुधार जाऊ कैसे । मेरे लिए तो तुम्हीं सब कुछ थी और हों, अब तू ही बता तुम्हे ठुकराऊ कैसे । उस रास्ते मे तीखे मोड़ बहुत है, पर मंज़िल वही है तो मुड़ जाऊ कैसे । मैं एक बंद कमरा हू कई राजो का अरसो से, अब एक ही झटके में खुल जाऊ कैसे । हम उतने भी मोमदिल नही है जितने दिखते है, तुम्हारा साथ रहना आख़िर भूल जाऊँ कैसे । अभी पता नही कितने दिन और रह पाऊ तम्हारे बीना, इतनी जल्दी तुमको अपने जेहन से निकालू कैसे । तुम्हारे सिवाय और कोई नही हैं मेरी ज़िंदगी मे, ये बात तुम्हे समझाऊ कैसे । नज़रे फिर से, तुमसे मिलाऊँ कैसे ।।