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पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है, परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है।। मैं आप का परछाई हूँ।❤️

माँ❣️

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माँ कहने को तो शब्द है बहुत छोटा  पर इस शब्द की गहराई की माप नहीं  हम दुनिया के लिए बेसक कुछ भी नहीं पर माँ के लिए तो मुझ जैसे लाल नही  कभी डाटती हमे कभी गले लगाती  हमारी आँखों के अंशु पोछती अपने होठो की हंसी हम पर लुटाती  हर मर्ज की दावा वो खुद ही होती  हमारी खुशियों में सामिल होकर  अपने हर गम को भुलाती  दुनिया की तपिश में हमे बचा के अपनी अंचल की शीतल छाया देती जब भी कभी ठोकर लगे मुझे तो याद बस तूही आती , याद बस तूही आती माँ🥺                                :- अमितेश

समझ😑

कितना कुछ बदल दिया तुमने , समझा कर लौट जाता है ये दिल । बचपन की दुनिया में कुछ सपने लिए, दिन, महीने, वर्ष बीता देता है ये दिल । कुछ पलों में कुछ वायदे लिए बेचैन रहता ये दिल, उसे पूरा करने के लिए झूठ बोलता है ये दिल । और सबसे लड़ने के लिए भी तत्पर रहता है ये दिल, तम्हारी आँखों के चमक लिए घूमता रहता है ये दिल । समझा कर उसे अपने दिल के लिए, सचमुच! पागल कर देता है ये दिल । कितना कुछ बदल दिया तुमने , समझा कर लौट जाता है ये दिल ।                                                                                   अमितेश  गुप्ता

।।दिल से जाने न दूँगा।।

दिल में सजो के रखूंगा  कभी रोने नही ही दूँगा, एक बार पास आके देख  दिल से जाने न दूँगा।। मुझे समझना आसान नही नासमझ तुम ना ही समझ, दिल में सजो के रखूंगा दिल से जाने न दूँगा ।। तेरे सिवा न कोई जिन्दगी, अब हसरत नही जिन्दगी से दिल में सजो के रखूंगा दिल से जाने न दूँगा।। हाँ हो गया एक दफा बस मुझसे गुनाह ये मैं बार बार नहीं करता  हां मैं तुझसे येही कहूंगा हमेशा मैं तमसे प्यार नहीं करता ।। उलझ सा गया हू यूही  कोई दिखता नही तेरे सिवा, इसलिए मैं हमेशा यही कहुगा दिल में सजो के रखूंगा दिल से जाने न दूँगा ।।                                अमितेश❣️ 

||नज़रे मिलाऊँ कैसे?||🤔

नज़रे फिर से तुमसे मिलाऊँ कैसे , गलती वहीं फिर से दोहराऊं कैसे । इन आँखों को तो तम्हे देखने की आदत है, तम्हारे चक्कर मे सुधार जाऊ कैसे । मेरे लिए तो तुम्हीं सब कुछ थी और हों, अब तू ही बता तुम्हे ठुकराऊ कैसे । उस रास्ते मे तीखे मोड़ बहुत है, पर मंज़िल वही है तो मुड़ जाऊ कैसे । मैं एक बंद कमरा हू कई राजो का अरसो से, अब एक ही झटके में खुल जाऊ कैसे । हम उतने भी मोमदिल नही है जितने दिखते है, तुम्हारा साथ रहना आख़िर भूल जाऊँ कैसे । अभी पता नही कितने दिन और रह पाऊ तम्हारे बीना, इतनी जल्दी तुमको अपने जेहन से निकालू कैसे । तुम्हारे सिवाय और कोई नही हैं मेरी ज़िंदगी मे, ये बात तुम्हे समझाऊ कैसे । नज़रे फिर से, तुमसे मिलाऊँ कैसे ।।

|| मैं नही रहूंगा तोह ! कौन कहता? ||🙃

तुम्हारे हर मुस्कान पर मुस्कराना , मैं नही रहूंगा तोह ! कौन करता ? तम्हारे बात बताने पे हा बताओ, मैं नही रहूंगा तोह ! कौन कहता? तुम्हारे हर बात पे इतराना , मैं नही रहूंगा तोह ! कौन करता ? तम्हारे मुरझाये सकल पे डाटना, मैं नही रहूंगा तोह ! कौन करता? तुम्हारे हर रात पर न सोने का जिद्द, मैं नही रहूंगा तोह ! कौन करता? तम्हारे हर मुश्किल में साथ रहने की बात, मैं नही रहूंगा तोह ! कौन कहता? तम्हारे डांटने पर फिर से हँसदेना, मैं नही रहूंगा ! तोह कौन करता? तुम्हारे हर बात पे पहले तुम-पहले तुम , मैं नही रहूंगा तोह ! कौन कहता? ____________________🤐 मैं नही रहूंगा तोह ! कौन कहता?

।। ज़िन्दगी।।

विश्वास नही होता ! मैं खुद को देख रहा हूँ। भूत , वर्तमान और भविष्य के गलिहारे में । मैं खुद को ढूढ़ रहा हूँ। अपने न होकर भी होने का प्रमाण को पर हर बार । खुद को खुद से  हारा हुआ पा रहा हूँ। मैने अपनी दृष्टि को  एक दिशा दे दिया हूँ। स्वयं से स्वयं के पराजय का अनुभूति कर लिया हूँ। पर हारा नही मैं अभी भी लड़ रहा हूँ। विश्वास नही होता ! मैं खुद को देख रहा हूँ। भूत , वर्तमान और भविष्य के गलिहारे में । मैं खुद को ढूढ़ रहा हूँ।                                                     :-अमितेश