।। ज़िन्दगी।।
विश्वास नही होता !
मैं खुद को देख रहा हूँ।
भूत , वर्तमान और भविष्य के गलिहारे में ।
मैं खुद को ढूढ़ रहा हूँ।
अपने न होकर भी होने का प्रमाण को
पर हर बार ।
खुद को खुद से
हारा हुआ पा रहा हूँ।
मैने अपनी दृष्टि को
एक दिशा दे दिया हूँ।
स्वयं से स्वयं के पराजय का अनुभूति
कर लिया हूँ।
पर हारा नही मैं अभी भी लड़ रहा हूँ।
विश्वास नही होता !
मैं खुद को देख रहा हूँ।
भूत , वर्तमान और भविष्य के गलिहारे में ।
मैं खुद को ढूढ़ रहा हूँ।
:-अमितेश
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