॥ लक्ष्य की प्राप्ति॥

               ॥ लक्ष्य की प्राप्ति॥

उड़ चल पक्षी राह अकेला, यहाँ ना तेरा कोई बसेरा
जहाँ मिले तुझे अपना डेरा, कर लेना तू रैन बसेरा।
तू हैं जगत मे एक अकेला, लगा यहाँ बहारो का मेला
यह मेला भी एक अलबेला, यहाँ सिर्फ माया का खेला।
जो भी खेला ये खेल निराला, हारा वह अपनों से हारा-हारा
दुर्दिन दशा मे फसँ जायेगा, मोह माया सब तज जायेगा।
तू है एक दर्पण की काया, टूटकर तू बिखर जायेगा
तुझको खुद से उठना ही होगा, तुझको खुद से बढ़ना ही होगा।
तेरा ना कोई सहारा रे, तेरा ना कोई सहारा रे
उड़ चल पक्षी राह अकेला, यहाँ ना तेरा कोई बसेरा॥

तू पथिक इस राह का एक अकेला, इस सफ़र में ना कोई तेरा
जिस राह चलेगा तू, 
वह राह दिखाए ढेरो सपने,पर उसमे ना कोई अपने
तू बड़ता है उडता ही चल, ये खुला आसमा तेरा हैं।
दुख दर्द तम्हारे शक्ति हैं, तू सचित कर-तू सचित कर
इस नागफनी सी दुनिया में, तू खुद को स्थापित तो कर।
तुने रूख हवा का मोडा है,तू कठिन परिश्रम करता रे
उड़ चल पक्षी राह अकेला, यहाँ ना तेरा कोई बसेरा।।

तुम से पुर्ण इस आसमां को, तू ज्योर्तिमय कर चल
आत्मशक्ति हथियार तेरा है, आगे तू बढता ही चल।
कत्तर्व्य करेगा सत्य मार्ग पर, कठिनाई तो आयेगी
इस कठिन डगर की ठोकर से, तू शक्ति का संचार तो कर।
दृढ़ संकल्पि कर्त्तव्यपरायण, तू नव युग का निर्माण करेगा
तू लक्ष्य को अपने पायेगा, तू जीवन सफल बनायेगा।
रोशन जहाँ को तू करके, ख्याति जगत में पायेगा
तू शूरवीर है इस जग का, तू शूरवीर है इस जग का
उड़ चल पक्षी राह अकेला, यहाँ ना तेरा कोई बसेरा।।
         
             
                                           अमितेश कुमार गुप्ता
                                        

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