मैंने उठायी , आज कलम लिखने चला मोहब्ते दास्ता ।। पर बया नही हो पाया , सायद उसकी ,चाहत येही थी । फिर मैंने सोचा लिखू क्या सायद ये मोहब्ते शिकायत होगा ।। मैंने उठायी , आज कलम लिखने चला मोहब्ते दास्ता ।। क्या सोचेगे लोग , मुझे फर्क नही पड़ता । क्योंकि मैं आज भी वैसा ही हू जैसा कल था ।। मैं आज भी खुश होता हूँ , उसकी हँसी देख कर । सायद वो भी कभी ख़ुश हुई होगी मेरी हँसी पर ।। मैं आज भी उसी का हू , ये वो नही जानती । सायद वो मेरे किस्मत में नही , ये ईश्वर ही जानते होंगे ।। मैंने उठायी , आज कलम लिखने चला मोहब्ते दा स्ता ।। ...